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आज सोनिया गांधी का जन्मदिवस: भारतीय राजनीति की सफलतम बहू, जिसे नहीं मिल पा रहा पार्टी में अपना वारिस

सोनिया करीब दो दशकों से कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभाले हुए हैं. कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पहले कार्यकाल में सोनिया ने 19 साल तक पार्टी की बागडोर संभाली. राहुल गांधी के पद छोड़ने के बाद एक साल से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम देख रही हैं. पहली पारी में सोनिया ने जहां पार्टी को करिश्माई नेतृत्व दिया, वहीं दूसरी पारी में वो नाइट वॉचमैन की भूमिका में ज्यादा नजर आईं.

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सोनिया गांधी के नाम सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस अध्यक्ष बने रहने का रिकॉर्ड है. 20वीं सदी के आखिरी सालों में पतन के गर्त में जाती दिख रही कांग्रेस में दोबारा जान फूंककर उसे लगातार 10 साल तक देश की सत्ता में बैठाने का श्रेय उन्हें जाता है. भारतीय राजनीति की सफलतम बहू सोनिया गांधी का आज जन्मदिन है. उन्होंने अपने जीवन के 73 साल का सफर ऐसे समय पर पूरा किया है, जब उनकी पार्टी अपने सबसे कमजोर मुकाम पर खड़ी है. कांग्रेस का जनाधार लगातार सिमटता जा रहा है और संगठन बिखरा सा नजर आ रहा है. ऐसे में ‘गांधी परिवार’ के साथ-साथ कांग्रेस के नए वारिस की सोनिया गांधी की तलाश पूरी नहीं हो रही है.

Sonia Gandhi Biography

सोनिया गांधी का सफल सियासी सफर 
सोनिया करीब दो दशकों से कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभाले हुए हैं. कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पहले कार्यकाल में सोनिया ने 19 साल तक पार्टी की बागडोर संभाली. राहुल गांधी के पद छोड़ने के बाद एक साल से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम देख रही हैं. पहली पारी में सोनिया ने जहां पार्टी को करिश्माई नेतृत्व दिया, वहीं दूसरी पारी में वो नाइट वॉचमैन की भूमिका में ज्यादा नजर आईं.

Sonia Gandhi Biography

सोनिया ने 22 साल पहले जब पद संभाला तब देश की सियासत में अटल बिहारी वाजपेयी-लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी तूफान मचाए हुई थी. थर्ड फ्रंट की राजनीति भी अपने सियासी उफान पर थी. क्षत्रपों के आगे कांग्रेस बेबस नजर आ रही थी. ऐसी हालत में सोनिया गांधी ने नेतृत्व संभालकर कांग्रेस को नई संजीवनी दी और उसे फिर से राजनीति के शीर्ष पर पहुंचाया.

सोनिया 1998 से 2017 तक पार्टी की अध्यक्ष रहीं. 2004 में उन्होंने पार्टी के चुनाव प्रचार का नेतृत्व किया. ये उन्हीं का करिश्मा था कि अटल बिहारी वाजपेयी की छह साल की उपलब्धियां और शाइनिंग इंडिया, फील गुड का नारा धूमिल पड़ गया. कांग्रेस ने धमाकेदार वापसी कर केंद्र में सरकार बनाई. सोनिया ने तब खुद प्रधानमंत्री बनने से इनकार करते हुए इस पद पर मनमोहन सिंह की ताजपोशी का फैसला किया, जिसे आज भी कई सियासी जानकार राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक मानते हैं.

सियासत में नहीं आना चाहती थीं सोनिया गांधी
हालांकि, 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी राजनीति में आने को तैयार नहीं थीं. सियासत में उनकी भागीदारी धीरे-धीरे शुरू हुई. पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे प्रणब मुखर्जी अपने संस्मरण में लिखते हैं कि सोनिया को कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय करने के लिए पार्टी के कई नेता मनाने में लगे थे. उन्हें समझाने की कोशिश की जा रही थी कि उनके बगैर कांग्रेस खेमों में बंटती जाएगी और भारतीय जनता पार्टी का विस्तार होता जाएगा.

Happy Birthday Sonia Gandhi: A look at some of her rare pictures - FYI News

वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि सोनिया कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार 1997 में गईं. उन्होंने पद लेने के बजाए पार्टी के लिए प्रचार से अपना राजनीतिक करियर शुरू किया. 1998 में कांग्रेस की कमान संभालने के बाद पार्टी को मजबूत किया. वो न तो बहुत ही अच्छे से हिंदी बोलती थीं और न ही राजनीति के दांवपेच से बहुत ज्यादा वाकिफ थीं. इसके बाद भी पार्टी पर उनकी पकड़ काबिले तारीफ थी. सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस 1999 का लोकसभा चुनाव लड़ी. लेकिन उसे मुंह की खानी पड़ी. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि वाजपेयी की अगुवाई वाली बीजेपी को उस चुनाव में करगिल युद्ध और पोखरण परमाणु विस्फोट का राजनीतिक लाभ मिला.

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2004 के लोकसभा चुनाव में दिखाया असर
शकील अख्तर कहते हैं कि 2004 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों के वक्त बतौर अध्यक्ष सोनिया गांधी की सूझबूझ और सियासी समझ सबसे प्रमुखता के साथ दिखी. सोनिया गांधी ने सत्ताधारी बीजेपी के मुकाबले के लिए एक प्रभावी गठबंधन तैयार किया. वे कांग्रेस से मिलती-जुलती विचारधारा वाले ऐसे दलों को कांग्रेस के साथ लाने में सफल रहीं, जिनकी राजनीति ही कांग्रेस के विरोध में खड़ी हुई थी. इसका नतीजा यह हुआ कि केंद्र की सरकार में कांग्रेस की वापसी हो गई.

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन सोनिया ने यूपीए की प्रमुख के तौर पर सरकार चलाने के राजनीतिक पक्ष को देखा. राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष के तौर पर सरकार के नीतिगत पक्ष को भी उन्होंने प्रभावित किया. नीतियां बनाने के मामले में अधिकार आधारित नीतियों को प्रमुखता दिए जाने को सोनिया गांधी का योगदान माना जा सकता है. कांग्रेस के 10 साल के कार्यकाल में सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, वन अधिकार, भोजन का अधिकार और उचित मुआवजे और पुनर्वास का अधिकार संबंधित कानून सरकार ने बनाए.

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सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली तो केंद्र में ही नहीं राज्यों में भी पार्टी की चूलें दरक चुकी थीं. उत्तर प्रदेश और बिहार से तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया था. राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से भी कांग्रेस बाहर हो चुकी थी. सोनिया गांधी ने इस चुनौती को स्वीकार किया और उन्होंने राज्यों में कांग्रेस को सांगठनिक रूप से मजबूत किया और उसे सत्ता में लाने में कामायाब रहीं.

सोनिया के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल में सत्ता में आने में कामयाब रही. वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि सोनिया गांधी बतौर अध्यक्ष कांग्रेस को सत्ता के करीब ही नहीं लाईं, पार्टी को सांगठनिक मजबूती भी देने का काम किया और राज्यों में मजबूत नेतृत्व तैयार किया. दिल्ली में शीला दीक्षित, हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, राजस्थान में अशोक गहलोत और आंध्र प्रदेश में राजशेखर रेड्डी इसके उदाहरण हैं.

Sonia Gandhi not to celebrate her birthday

राहुल गांधी नहीं संभाल पाए पार्टी
महाराष्ट्र में कांग्रेस 15 सालों तक सत्ता में रही लेकिन नेतृत्व संकट उभरा तो सोनिया ने हर बार नए चेहरे को मौका देकर इसे टाला. विलास राव देशमुख, अशोक चह्वाण और पृथ्वीराज चह्वाण जैसे नेता सामने आए. दूसरी पारी में उन्होंने महाराष्ट्र और झारखंड में सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाई. ऐसे में निश्चित तौर पर सोनिया ने कांग्रेस को नई बुलंदी देने का काम किया. इसके बावजूद उनके सामने सबसे बड़ा संकट यही खड़ा है कि पार्टी की कमान वो किसके हाथ में सौंपे. उन्होंने अपने सियासी वारिस के तौर पर अपने बेटे राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपी थी, लेकिन उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद पद छोड़ दिया, जिसके बाद सोनिया गांधी को दोबारे से पार्टी की बागडोर अपने हाथों में लेनी पड़ी.

Sonia Gandhi will not celebrate her birthday due to farmer movement and corona crisis Sonia Gandhi will not celebrate her birthday due to farmer agitation and Corona crisis - allnewsflash

सोनिया के सामने नए अध्यक्ष की तलाश
सोनिया गांधी अपने पहले अध्यक्षीय कार्यकाल में बहुत सफल रही थीं, लेकिन अब वे 73 साल की हो चुकी हैं और अस्वस्थ होने के चलते पार्टी को भी उतना समय नहीं दे पा रही हैं, जितना पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनसे अपेक्षित है. सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस ने महाराष्ट्र और झारखंड में सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई, लेकिन मध्य प्रदेश में पार्टी में फूट के चलते उसे सत्ता गवांनी पड़ी. वहीं, कांग्रेस को यह समझने की जरूरत है कि उनकी पार्टी का सामना बेहद शक्तिशाली होकर उभरी बीजेपी से है और उनकी पार्टी नरेंद्र मोदी के उदय काल से पहले वाली कांग्रेस भी नहीं है. खासकर युवा पीढ़ी में कांग्रेस की राजनीतिक प्रासंगिकता को लेकर गहरे सवाल हैं. कांग्रेस को इन सवालों के ठोस जवाब और स्पष्ट विजन वाले नेता की तलाश करनी है, जिसके खोज सोनिया और पार्टी दोनों ही नहीं कर पा रही है.

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